Thursday, March 5, 2009

Aurat











औरत हूँ, ताकतवर भी, कमजोर भी


कभी मैं स्वयं कुरबान हो जाती हूँ


कभी मेरी कुरबानी जबरन ली जाती है


मेरी कुरबानी सदा नदारद ही जाती है


कुरबानी मेरी फितरत जो है


निस्वार्थ कुरबानी मेरी ताकत है


और यही मेरी कमजोरी भी है


बेटे के लिए दूध में मिसरी और


बेटी के हाथों पर रोटी-


नमक धरनेवाली मैं ही हूँ


सास बनकर बहू को खड़ी-


खोटीसुनानेवाली भी मैं ही हूँ


और बहू बनकर सास को


जहरदेनेवाली औरत भी मैं ही हूँ


यही मेरी ताकत है और कमजोरी भी


मेरा अपना आपा कुछ नहीं है


समाज,, संस्कार और


संस्कृतियही मेरा वजूद है


मेरी पैदाइश ही अशुभ और बोझ है


मेरी आँखों से आँसू की जगह खून टपकता है


तब भी मैं उफ तक नहीं करती हूँ


यही मेरी ताकत है और कमजोरी भी


पसीमा की तरह मेरी आँखों से


अविरल आँसू झरते रहते है


फिर भी कोयल की तरह मेरीजुबान


मीठी है और मधुर भी


अखंड पवित्रता पर दाग न लगे


स्वयं अपनी हाथों अपनी


चितासजानेवाली पद्मिनी भी मैं ही हूँ


यही मेरी ताकत है और कमजोरी भी


मेरी अपनी कोई पहचान नहीं


मेरे शरीर के हजार टुकड़े है


किन-किन को गिनाऊँ,


बसयूँ समझ लो कि इस दुनिया


कोरचनेवाली देवी मैं ही हूँ


हूँऔर मिटानेवाली भी मैं ही हूँ

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