Thursday, November 19, 2009

Arz hai

समझे नहीं जो खामोशी मेरी,
मेरे लब्जों को क्या समझेंगे |
बचते रहे उम्र भर साये से मेरे,
मेरे जख्मों को क्या समझेंगे |
भूल जाना यूँ तो नहीं है, रवायत मोहब्बत की |
समझे नहीं जो हालात मेरे,
इन रस्मों को क्या समझेंगे |

_______________________________________
अंधियारे उजियारे सब इस जीवन के हिस्से हैं
जो साथ चल रहा साथी है बाकि सारे किस्से हैं
चित्त वायु वेग सा चंचल है भ्रमित करे जो पल पल है
मन को साधे साधू है अधखुले तो दल दल है

_______________________________________
समय बदल जाये चाहे पर बदल ना मन तो पाता है.
पल का सारा सार ना जाने, कैसे यूँ खो जाता है,
अंखियों ने देखे जो सपने हो ना पाते वो अपने
आकर पल ना जाने पल में कैसा क्या बो जाता है,
पीर बने प्रहरी पल की रहे सुहागिन सी मन में,
संबल मन का ना जाने कैसे,क्या दे पल को जाता है

_______________________________________

0 comments :