बैठ गया है, मेरे दिल में
बैठ गया है, मेरे दिल में 
बनकर कोई तांत्रिक 
जाने कौन अशुभ घड़ी थी, वह 
जो मैंने किया उसको आमंत्रित 
एक अनगढ़ा पत्थर - सा 
पड़ा हुआ था, सड़क के किनारे 
उसको चमकाने के लिए 
हम क्यों नगर ले आए 
गदले पानी के गढ़े में 
एक जंगली पौधा- सा खड़ा था 
हम क्यों उसे अपने आँगन में 
तुलसी-चौरे पर लाकर बोये 
रातों के अँधेरे में घूमता था 
निशाचर - सा , इधर- उधर 
हम क्यों उसकी राहों में 
दीप जलाकर उजाला किये 
सौ बातों की एक बात है 
जो जहाँ हैं, वहीं रहें 
फूलों को फूल ही रहने दें 
पत्थर को पत्थर ही कहें

0 comments :
Post a Comment